न जाने क्यों
हलचल सी हो रही है जिंदगी में न जाने क्यों, कोई चल पड़ा है सूनी राह में न जाने क्यों। देखना जज्बात कराहते थे जहां कांटों में -- उन्ही राहों में फूल बिछ गये हैं न जाने क्यों।।
यहां वहां न जाने कहां कहां हूँ मैं। अनायास हूँ लय में हूँ अयाचित हूँ आभासित हूँ। आयाम हूँ या फिर विराम हूँ...!