दोहे
निरख चांद पूनम का, सागर अति अकुलाय। मिलन सुधा तीव्र हुई, लहर लहर लहराय ।। तटिनी लहर निहार कर , मन ही मन सकुचाय। बैरन सी हो गई तृषा, कौन दिशा अब जाय।। ज्वालामुखी भडक रहा, सागर से मुंह मोड़। निशा का आह्वान कर, घन से कर गठजोड़।। छल रहा क्यों परिवार, सागर है अति बिस्मित । अगाध स्नेह छलका कर, प्रीति हुई अस्फुटित।। नभ भी अश्रु छलका रहा, मेघ अति बरसाय । चकोर अति रिझाये अब, सागर है पछताय।। ~जीवन समीर