पतंग की डोर सी
पतंग की डोर सी स्वप्नों की उड़ानें दे दो घड़ी भर के लिए बचपन के जमाने दे दो। इस जहां में मन नहीं लगता है अब कहीं मुझ पर एहसान करो दोस्त पुराने दे दो।। जिन लपटों में बेबस सन्नाटा पसरा हो उनको भर कर तुम मौत के पैमाने दे दो। जिस्म तक ही मोहब्बत सिमटी है इधर गम गलत करने के मुझे बहाने दे दो।। बहुत घुटन हे तेरी तासीर में अच्छा हो गर भावों की नरमी भरे मुझे मयखाने दे दो।। ~जीवन समीर ~