कविता
ह्रदय में जब प्रेम जागा उनके अंतर्द्वंद की खाईयां पट गई अनर्गल शोर की गहमा-गहमी ठहर गई आकाश छितराया था पंछियों की चहलकदमी बढ़ गई थी नीरवता की अधनंगी तस्वीर लपटों की भेंट चढ़ गई सजीव सिलवटों की चादर मुस्कुरा उठी...! ~जीवन समीर