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आंसुओं के नाम

ग्रंथियां उलझ गई छाये मेघ स्याम प्रीत मेरी हो गई आंसुओं के नाम विरह घड़ी कटे नहीं नीर लगे तप्त अंगार पीर अंतस की बढ रही बिहंसता स्वप्निल संसार पर्वतश्री की स्नेहिल धारा है गुमनाम प्रीत मेरी हो गई आंसुओं के नाम नव किसलय सी सज चौंधियाता था उल्लास एक आंधी ने दे आहट लूट लिया सब विश्वास अंबर में फैल गये कालिख के आयाम प्रीत मेरी हो गई आंसुओं के नाम ~जीवन समीर