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वजह दे दो

संताप से घिरे जीवन में मुस्कराने की वजह दे दो घुटन भरे माहौल में जलजला लाने की वजह दे दो। चक्रव्यूह में फंसा है श्वास श्वास निरीह चेतन का दाह में जलते बचपन को खिलखिलाने की वजह दे दो युद्धरत है दिनकर से निशा भोर से सांझ होनेतक उलझे वियावान में सिलवटों को सुलझाने की वजह दे दो संघर्ष के कर्कश तम में झंकृत है जुगनू की पायल भंवर की इस नाट्यशाला में नाचने की वजह दे दो। अस्मत निशिदिन रौदी जाती क्रंदन का शोर है हवस भरे मरघट में प्राण प्रत्यर्पित होने की वजह दे दो। ~जीवन समीर ~