तुम बिन

कौन दिशा चली पुरवैया
कौन दिशा चले सांवरिया
दलदल में धंसा उर मेरा
कौन दिशा जाये बावरिया

पनघट पर चिढाये सखियां
दुस्तर हो गई व्यथा डगरिया
तीर नजरों के दुखते मदने
बोझिल हुई विरह गठरिया

अब के आकर बरस जाओ
प्रीति में मानसून जैसे
भीग भीग जाऊं इस तरह
जनम जनम रहूं बस ऐसे

ये चूड़ियाँ कंगना झुमके नकबेसर
ये केश पलकें मंद मंद मुस्कान
लूट लो तुम चैन धडकन सांसें
तेरे बिन मैं कुछ नहीं मेरे साजन

भंवर में पतवार डुबोती जा रही
न कोई शिकायत न झांसा कोई
रिश्तों के अनुबंध में बंधी हूं क्यो
सोचो एकबार तुम बिन प्यासा कोई

नयनों में कामुकता झलके
बयार ने फिर मादकता छलकाई
देह का सिंगार करूं भी कैसे
तुम बिन कहां जीवन में मधुराई।
~जीवन समीर 

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