जिंदगी संवार दो
जिंदगी संवार दो
कुछ पल उधार दो
लुटे हुए गुलिस्तां को
एक नयी बहार दो
नफरत के दौर में
हो सके तो प्यार दो
खुश रंग के हो शौकीन
रंग से भरा सिंगार दो
कंटकों से भरे जीवन को
दर्द से तुम उबार दो
रूह से रूह मिलाकर
जिस्म को तुम निखार दो
फिजूल की खबरें नहीं
सच्चाई भरा अखबार दो
गंदगी भरे शहर को
दिल से तुम बहार दो
लगाकर आज पर ध्यान
कल को तुम बिसार दो
परत दर परत चढ़ गया
द्वैष की चांदी को उतार दो
बदनुमा आवरण को तुम
खूबसूरत एक आकार दो
मय की मदहोशी नहीं
नेहभरा खुमार दो
मौत आकर मांगती है
जीने का नया आधार दो
निगाहे शौक से घायल
कायल हो अब निहार दो
~जीवन समीर ~
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