यूंही बेसब्र होकर

यूंही बेसब्र होकर बात न कर
बेवजह हसरतों की शुरुआत न कर

मोहब्बत में तोलते रहे हमें क्योंकर
मेरी आरजू का वजन कमतर न कर

क्या समझता है न जाने मुझे
तू मुझे ख़ामख़ाह बदनाम न कर

हंसने का शौक इतना पाल के
रोने के मौकों में इंकार न कर

दिल से दिल लगाकर देख लिया तूने
अब इश्क से इश्क करने की भूल न कर

छलनी किये देते हो तुम कलेजा
तीर नजर मुझमें आजमाया न कर

सूरज डूब गया है समंदर में आज
अपनी आंखों में आंसुओं को सरसार न कर

तुम भी रखते हो अक्ल की दौलत समीर
यूंही हामी भरकर सिर हिलाया न कर

आकाश में उडन को पंख मिले हैं गर
तू दरिया में जाकर डूबा न कर

दिलों में पैठ अपनी बढाने की सोच
यूंही किसी से घात-प्रतिघात न कर
~जीवन समीर ~

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गीत

सुधि आई

तुम क्यों अचानक