जन्मने से पूर्व

मैने वंचित रखा है
इस बूढ़े सठियाये प्रेम को
स्वयं से!
क्यों लगा रहता है 
मरने की कोशिश में 
जैसे अवैध 
पल रहे शिशु को 
निकाल देना चाहती हो
वह नवयौवना
जिसे मैंने अपनी अकृतिम वासना से 
प्रेम के जाल में फांस कर
बनाया था 
हवस का शिकार! 
वह नहीं जन्मने देना चाहती
ठूठ चिंह को
सूखे अवसाद की फड़फड़ को
रेंगती हवाओं के सहारे! 
सुगंध की सौगंध खाकर भी
मैं लंगडाता ही
चला जा रहा हूं! 
उदासियों की तासीर में 
उसकी सारी भड़स
 सारी संवेदनाएं
उसके अल्हड़ 
गदराये तन को
उदास नहीं करती
सामर्थ्य भरती है! 
मैं भंवर में हूँ 
नदी के अजल प्रवाह में 
भटक कर 
डूबने को तैयार हूँ 
जिसमें तैर रही हैं 
तुम्हारे डबडबाये 
अश्रु बुलबुले! 
तुम्हारे द्वारा फेंका हुआ 
हताश जाल
आकाश लेकर आता है 
पाल! 
किंतु सब निरर्थक है 
टूटने के बाद 
निर्वस्त्र देह भी
कहां झेल पाती है 
अंतर्मन की पीर! 
जब भी आत्मा का बोझ
सीने से हटेगा
हत्यारे प्रेम की लहरें
हम दोनों के बीच 
फिर कोई संबल
खड़ कर देगी
प्रेम की अभेद्य धुंध के बीच 
अपूर्ण होकर मैं लौट जाऊंगा 
उन शब्दों को लेकर 
जो हमेशा निःशब्द ही रहे! 
मुझे पता है 
मुझे विश्वास है 
प्रेम भर जायेगा 
क्योंकि उसके पेट में 
नाजायज पल रहा 
एक अधीर शिशु! 
और तुम्हें भी 
अवगत करा दूं 
कि जो जन्मने से पूर्व 
मार दिया जायेगा! 

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