तुम क्यों अचानक
मिलन बांसुरी बजाकर
सृजन का साज सजाकर
नेह के नयन मिलाकर
प्रीत के मधुर गीत गाकर
खो गई तुम क्यों अचानक...
छुपी चाह की अग्नि में
घी छिड़क कर
अंधेरी निशा में रोशनी दिखाकर
कामज ज्वाला भडका कर
रोम-र में दाह उकसाकर
छोड़ गई तुम क्यों अचानक....
कौन - सी राह में गुजर गई हो
कौन-सी स्पंदित शिराओं में सिमट गई हो
जर्जर वय की उच्छखृंला में घिरकर
दृगों में जग का सार लिए
चली गई तुम क्यों अचानक .!
~जीवन समीर
सृजन का साज सजाकर
नेह के नयन मिलाकर
प्रीत के मधुर गीत गाकर
खो गई तुम क्यों अचानक...
छुपी चाह की अग्नि में
घी छिड़क कर
अंधेरी निशा में रोशनी दिखाकर
कामज ज्वाला भडका कर
रोम-र में दाह उकसाकर
छोड़ गई तुम क्यों अचानक....
कौन - सी राह में गुजर गई हो
कौन-सी स्पंदित शिराओं में सिमट गई हो
जर्जर वय की उच्छखृंला में घिरकर
दृगों में जग का सार लिए
चली गई तुम क्यों अचानक .!
~जीवन समीर
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