मैं चक्रधर हूं
कर्ण नहीं मैं कि जो मांगो दे दूंगा लाचार नहीं मैं जो चाहोगे कर जाऊंगा मैं हिंद हूं दानी हूं पर अभिमानी हूं प्रेम में सर्वस्व समर्पित कर जाऊंगा अतीत के घावों से आक्रोशित है जर्रा जर्रा क्रूर नहीं मैं पर छेडोगे गर मुझको क्रूरता की सीमा पार कर जाऊंगा और सोच लेना प्रभंजन के सम्मुख अटल पहाड़ हूं ये वीरों का देश है आजादी के खातिर मैं महाराणा प्रताप हूं मैं भीष्म का बीज हूं प्रतिज्ञा में मृत्यु को बरण कर जाऊंगा ये मेरा कश्मीर है लश्कर बनकर आऊंगा दिल्ली से ज्यादा प्यारा है कट जाऊंगा मर जाऊंगा कश्मीर से तेरे नामोनिशान मिटा जाऊंगा मैं चक्रधर हूं तेरे ही अस्त्रों से तुझे मात दे जाऊंगा मैं चक्रधर हूं तेरे ही प्यादों से तुझको छल जाऊंगा ~जीवन समीर ~