छल कपट के वारे न्यारे हैं
छल कपट के वारे न्यारे हैं दुष्ट प्रवृत्ति वाले सबके प्यारे हैं मिश्री घोल कर करते जो घात दोगले होते हैं जिनके जज्बात पीठ पीछे बुराई के हैं सरताज छुपाकर भी छुप नहीं सकते उनके राज पर निंदा है ही उनकी जीवन चर्या चुभाते कांटे जो भी दें वे प्रतिक्रिया दीनहीन की उडाते हैं बस खिल्ली देख नहीं सकते कभी भी दूसरे की खुशी कुटिल नीति अशांति के ये रखवाले हैं अपयश के पहरेदार बडे़ निराले हैं गतआगत की चिंता के ये चटोरे हैं कस्तूरी मृग से दिग्भ्रमित बौराये हैं। ~जीवन समीर ~